जानिए तुलसी विवाह का शुभमुहर्त का समय और पढ़े तुसली और शालिग्राम की शादी की कहानी

हिन्दुओ में दिवाली के त्यौहार के 11 दिन बाद ग्यारस का पर्व मनाते है जिसे देवउठनी नाम से भी बुलाते है. इसे कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है. इस त्यौहार के दिन तुलसी के पौधे की शादी शालिग्राम के साथ की जाती है. 8 नवंबर को इसे पुरे देश में धूमधाम के साथ मनाया जाता है. कहा जाता है कि इस त्यौहार के बाद से हिन्दुओ में मंगल कार्यो की शुरुआत होती है. इसके अलावा विवाह के सुबह दिन भी इसी दिन निकलते है. देवउठनी के दिन भगवान कृष्ण के पत्थर स्वरूप आकार शालिग्राम की शादी लक्ष्मी माँ के तुलसी स्वरूप के साथ की जाती है. इन दोनों की शादी को बड़ी ही धूमधाम के साथ किया जाता है और इस बार इनकी शादी का शुभ मुहर्त कब का है आइये जानते है .

शुभ समय तुलसी विवाह का 

तुलसी और शालिग्राम विवाह का शुभ मुहर्त 8 नवंबर को दिन दोपहर 12 बजे से शुरू होगा और अगले दिन 9 नवंबर दोपहर 2 बजकर 39 मिनट तक रहेगा.

तुलसी विवाह की कहानी 

हिन्दुओ के लिए तुसली विवाह का दिन बहुत शुभ माना जाता है. इससे जुडी वैसे तो काफी सारी कहानियां है लेकिन आज हम आपको उस कहानी के बारे में बताने जा रहे है जिसका जिक्र सबसे ज्यादा किया जाता है. इस दिन को देवउठनी के नाम से भी कहते है क्योंकि कहा जाता है कि भगवान विष्णु अपनी 4 महीने की नींद पूरी करके इस दिन उठे थे. तभी से इस दिन को काफी शुभ माना जाता है और इस दिन के बाद किये गये सभी कार्य भी शुभ रहते है. टीवी में दिखाई जाने वाली कहानी के अनुसार अगर हम बात करे तो राधा का नाम ही वृंदा था और श्रीकृष्ण का एक स्वरूप शालिग्राम था.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जिस समय वृंदावन बंजर धरती थी तो उस समय राधा के पैर उसपर पड़ने से बजंर जमीन पर तुलसी के पौधे उग आये थे. इसके बाद से वृंदावन की स्थापना हुई. इसके बाद कृष्ण भगवान ने राधा को शालिग्राम से बना कलावा उपहार के रूप में दिया था. राधा को ये कलावा बहुत प्रिय था और इसलिए वे इसे हमेशा अपने हाथ में बांधकर रखती थी. तुलसी और शालिग्राम के विवाह की कहानी को लेकर कहा जाता है कि भगवान विष्णु के हाथो वृंदा के असुर पति का वध हो जाता है. इस बात से वृंदा को गुस्सा आ जाता है और वह भगवान विष्णु को श्राप दे देती है

वृंदा के श्राप के बाद भगवान विष्णु पत्थर की मूरत बन जाते है. इसपर देवी लक्ष्मी वृंदा से अपने श्राप को वापिस लेने के लिए विनती करती है तो वृंदा अपने श्राप को बदलते हुए कहती है कि जब लक्ष्मी का तुसली स्वरुप में जन्म लेगी तो उनका विवाह भगवान शालिग्राम ( भगवान विष्णु ) से होगा. उसी दिन से इस त्यौहार को बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाने लगा. कहा जाता है कि अगर इस दिन कोई भी व्यक्ति तुलसी का विवाह शालिग्राम से करवाता है तो ये कन्यादान से भी बड़ा पुण्य का काम कहलाता है. हिन्दुओ द्वारा इस त्यौहार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.

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