जानें आखिर कौन हैं के. पराशरण जी, जिन्होने 92 साल की उम्र में कि रामलला की पैरवी

आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि जब व्यक्ति कुछ करने की सोच ले तो कोई भी चीज उसे रोक नहीं सकता है चाहे वो उसका उम्र ही क्यों न हो। कुछ ऐसी ही श्रद्धा देखने को मिली अयोध्या मामले में। जी हां कल जो सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में फैसला सुनाया कि वहां रामलला ही विराजमान होंगे, उसमें वरिष्ठ अधिवक्ता के पराशरण जी का भी महत्वपूर्ण रोल है। जी हां आपको बता दें कि उम्र के नौ दशक पार करने के बावजूद पराशरण जी पूरी ऊर्जा से अयोध्या मामले में अकाट्य दलीलें रखी। इनकी खासियत के कारण ही इन्हें भारतीय वकालत का ‘भीष्म पितामह’ यूं ही नहीं कहा जाता।

रामलला के प्रति इनकी भक्ति कुछ ऐसी है कि उम्र का ये पड़ाव भी उन्हे रोक नहीं पाया। उन्होंने हाल ही में कहा था कि उनकी आखिरी ख्वाहिश है कि उनके जीते जी रामलला कानूनी तौर पर विराजमान हो जाये। जब इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बीते अगस्त माह में रोजाना सुनवाई करने का फैसला लिया तो विरोधी पक्ष के वकीलों ने कहा था कि उम्र को देखते हुए उनके लिये यह मुश्किल होगा लेकिन 92 बरस के पराशरण ने 40 दिन तक घंटों चली सुनवाई में पूरी शिद्दत से दलीलें पेश की।

जब इस बात पर बहस होता था तो न्यायालय में पराशरण को बैठकर दलील पेश करने की सुविधा भी दी गई लेकिन उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि वह भारतीय वकालत की परंपरा का पालन करेंगे। जानकारी के लिए बता दें कि 1970 के दशक से ही परासरन खासे लोकप्रिय रहे हैं। हिंदू धर्मग्रंथों पर उनकी अच्छी खासी पकड़ रही है। इससे अब तक आपको ये तो समझ आ ही गया होगा कि 92 साल के पराशरण की वकालत की दुनिया में क्या हैसियत है, उसका अंदाजा आपको लग गया होगा।

खास बात तो ये है कि पराशरण रामलला के पक्ष को कोर्ट में रखते समय स्कन्ध पुराण के श्लोकों का जिक्र करा और बताया कि राम मंदिर का अस्तित्व वहां था। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पराशरण ने सबरीमाला मंदिर विवाद के दौरान एक आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश नहीं देने की परंपरा की वकालत की थी। राम सेतु मामले में दोनों ही पक्षों ने उन्हें अपनी ओर करने के लिए सारे तरीके आजमाए लेकिन धर्म को लेकर संजीदा रहे पराशरण ने सरकार के खिलाफ गए। ऐसा उन्होंने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट से रामसेतु को बचाने के लिए किया।

उन्होंने अदालत में कहा, “मैं अपने राम के लिए इतना तो कर ही सकता हूं। आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें कि पराशरण का जन्म 9 अक्टूबर 1927 को हुआ था जो कि राज्यसभा सदस्य और 1983 से 1989 के बीच भारत के अटार्नी जनरल रहे। पराशरण ने 1958 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी प्रैक्टिस शुरू की। आपातकाल के दौरान, वह तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल थे और 1980 में भारत के सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किए गए थे। इतना ही नहीं इसके अलावा ये पद्मभूषण और पद्मविभूषण से नवाजे जा चुके पराशरण को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए ड्राफ्टिंग एंड एडिटोरियल कमिटी में शामिल किया था।

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