इस समय पुरे देश में राम मंदिर के ही चर्चे हो रहे है. राममंदिर को लेकर बहस इतनी बढ़ गयी थी कि सुप्रीम कोर्ट को भी अपना फैसला सुनाने में इतना ज्यादा समय लग गया. काफी सालो से राम मंदिर को लेकर कई तरह के बवाल खड़े हुए है. अयोध्या में राम मंदिर बनेगा या बाबरी मस्जिद इस पर सुप्रीम कोर्ट की मोहर लग चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए ये स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि अयोध्या राम की जन्म भूमि है और वहां पर राम मंदिर ही बनेगा. इसके साथ ही मुस्लिमो के लिए अयोध्या में 5 एकड़ जमीन देने की बात भी की है. राम मंदिर को लेकर सबसे पहली बहस 1990 में शुरू हुई थी.
सन 1976 – 1977 में पुरातात्विक अध्ययन के दौरान अयोध्या में खुदाई में हिस्सा लेने लिए दिल्ली स्कूल से कई छात्रो को भेजा गया था उसमे से एक केके मुहम्मद नाम का छात्र था. खुदाई में जो स्तम्भ देखने को मिले उसमे खुदाई के दौरान बच्चो ने देखा कि स्तम्भों के नीचे वाले हिस्से को ईंटो से बनाया गया है. हैरानी वाली बात तो ये थी कि किसी ने आजतक इसे नीचे तक खोदकर नही देखा. खुदाई के दौरान केके ने देखा कि बाबरी मस्जिद के स्तम्भों का ब्लैक ब्लास्ट पत्थरों से किया गया है. जबकि उन स्तम्भों के निचले हिस्से को अगर ध्यान से देखा जाए तो उसमे 11वी और 12वी सदी में मन्दिरों में दिखने वाले कलश बनाये गये थे.
1992 में जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया तो केके मुम्मद ने कलश के चिन्ह से बने एक स्तम्भ को नही बल्कि 14 से 15 स्तम्भों को देखा था. हालांकि उस दौरान पुलिस सुरक्षा वहां पर ज्यादा हुआ करती थी और मंदिर के अंदर जाने की मनाही थी. चूँकि केके और उनके साथी खुदाई और रिसर्च से जुड़े हुए थे इसलिए उनपर किसी तरह की रोक टोक नही लगाई गयी. 2 महीने अयोध्या में रहने के बाद उन्होंने जो रिसर्च किया था उससे ये साफ़ पता चल गया कि राम मंदिर को तुड़वाकर यहाँ पर बाबरी मस्जिद बनाई गयी है.
खुदाई में की गयी रिसर्च से ये साफ़ हो गया था कि राम मंदिर को तुड़वाकर उसपर बाबरी मस्जिद को बनाया गया है. इसलिए 15 दिसंबर 1990 में केके मुहम्मद ने ये ब्यान दिया कि बाबरी मस्जिद के नीचे मैं खुद मंदिर के अवशेष देखे है. उस समय हिन्दू मुस्लिंम 2 गुटों में बंटे हुए थे और माहौल भी गर्म था. इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुछ लोगो ने इस केस को गुमराह करने की पूरी कोशिश की थी. अयोध्या में जो खुदाई हुई है उसमे 137 मजदुर लगाये गये थे. जिनमे से 52 मुसलमान थे. हैरानी की बात तो ये है कि कोर्ट को इतना गुमराह करने के बाद भी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंदिर के पक्ष में ही अपना फैंसला सुनाया.
फैसला सुनने के बाद भी वामपंथी इतिहासकार अपनी गलती मानने को तैयार नही थे. इसकी सबसे बड़ी वजह ये थी कि खुदाई में जिन इतिहासकारों को शामिल किया गया था वे बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे थे. इससे भी बड़ी हैरानी वाली बात तो ये है कि ये लोग कभी चाहते ही नही थे कि अयोध्या का ये मसला कभी हल हो. शायद इन्हें हिन्दुओ और मुस्लिमो का यूँ लड़ना अच्छा लगता था.