तुलसीदास जो की हिंदी साहित्य के एक महान वे एक हिन्दू कवी-संत, संशोधक और जगद्गुरु रामानंदाचार्य के कुल के रामानंदी सम्प्रदाय के दर्शनशास्त्री और भगवान श्री राम के भक्त थे। तुलसीदास जी अपने प्रसिद्ध दोहों और कविताओ के लिये जाने जाते है और साथ ही अपने द्वारा लिखित महाकाव्य रामचरितमानस के लिये वे पुरे भारत में लोकप्रिय है। रामचरितमानस संस्कृत में रचित रामायण में राम के जीवन की देशी भाषा में की गयी अवधि है।
तुलसीदासजी की सभी रचनाये प्रसिद्ध है जो हमारे लिये अनमोल है उनके दोहों में बहुत अच्छे संदेश रहते है जो प्रेरणादायक होते है क्योंकि तुलसीदास जी ने मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने के बारे में अपने कुछ दोहों के माध्यम से कुछ कहा है, साथ ही तुलसी दास जी ने महिलाओ को लेकर भी कई बाते बताई है,जो की बहुत ही गोपनीय है,जिनको हम आपको दोहों के माध्यम से बता रहे है
1.तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर, सुन्दर केकिही पेखु बचन सुधा सम असन अहि।
तुलसीदास जी अपने इस दोहे के माध्यम से कहते है की कभी भी सुन्दरता की वजह से धोखा नहीं कहाँ चाहिए |अक्सर सुदंर लोगों को देखकर मूर्ख ही नही बल्कि बुद्धिमान लोग भी मूर्ख बन जाते है |इसका उदहारण भी देख लीजिये जैसे की अब आप एक सुंदर मोर को ही देख लीजिये उसकी बोली कितनी मधुर होती है जबकि वह साँप को भी मार कर खां जाता है। इसका सीधा सीधा मतलब यही है कि सुंदरता के पीछे नही भागना चाहिए बल्कि किसी बिह व्यक्ति के मन की सुन्दरता को देखना चाहिए |
2- जननी सम जानहिं पर नारी। तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे।
इस दोहे के माध्यम से तुलसीदास जीने लिखा है कि जो पुरूष अपनी पत्नी के अलावा किसी और कि स्त्री को अपनी माँ बहन समझता है उसके ह्रदय में भगवान का वास होता है और जो पुरुष किसी और कि पत्नी से संबंध बनाते है वो पापी व्यक्तियों में गिने जाते है इस तरह के व्यक्ति से भगवान भी दूर रहना पसंद करते है।
3- धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी।आपद काल परखिए चारी ।
इस दोहे में तुलसी जी ने कहा है कि धीरज, धर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा अति मुश्किलों में ही ली जाती है अगर कोई बड़ी बात है तो इंसान के अच्छे समय मे तो हर कोई साथ देता है जो बुरे समय मे भी आपका साथ दे वो हमेशा अच्छा आदमी माना जाता है और वो आपका सच्चा साथी माना जाता है इसी प्रकार के व्यक्तियों पर भरोसा करना चाहिए।
4- सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ,राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।
तुलसीदास जी कहते है की मंत्री, वैद्य और गुरु ये तीन लोग अगर किसी से अपने फायदे के लिए किसी से प्यार से बात करे और उसके मन मे कुछ और है तो ऐसे व्यक्तियों का राज्य, धर्म और शरीर इन तीनों का जल्दी ही नाश हो जाता है कहने का मतलब है जो उसका कर्तव्य हो वो उसे ईमानदारी से करना चाहिए।अपना फायदा नही देखना चाहिये।
5- मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना,नारी सिखावन करसि काना।
गोस्वामी तुलसीदास जी अपने इस दोहे के माध्यम से कहते है की भगवान राम सुग्रीव के बड़े भाई बाली के सामने स्त्री के सम्मान का आदर करते हुए कहते है, दुष्ट बाली तुम तो एक महाअज्ञानी पुरुष हो जो तुमने अपनी ज्ञानी पत्नी की बात नही मानी और यही वजह है की तुम इस युद्ध में हार गए |कहने का मतलब है कि यदि कोई ज्ञानी पुरुष कुछ रहा हो तो अपना घमंड त्याग कर उस व्यक्ति की बात सुननी चाहिये।