कई बार ऐसा होता है कि छोटे जगहों से भी कुछ लोग ऐसी मुकाम को हासिल कर लेते हैं कि दुनिया उनके हौसलों को सलाम करना चाहती है। वो कहते हैं न कि जब कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो कोई कुछ भी कर सकता है। पर ऐसा बेहद ही कम लोगों के साथ होता है, क्योंकि लोग सपने तो बड़े बुनते हैं पर उन सपनों को साकार करने में जो समस्याएं आती है उस दौरान हार मान जाते हैं, और जो लोग इस परीक्षा को पास कर लेते हैं वो उन ऊंचाईयों को छूते हैं जो किसी ने नहीं सोचा होगा। हाल ही में एक ऐसा ही उदाहरण देखने को मिला। दरअसल हम आपको जिसके बारे में बताने जा रहे हैं वो एक ऐसी लडकी के बारे में है जो कि एक गाँव के छोटे से स्कूल में पढकर IPS बन गयी है।
जी हां सतना के अंदरूनी गाँव की बेटी सुरभि गौतम जिसके पिता कोर्ट में वकील थे और माँ सरकारी स्कूल में टीचर है। सुरभि के बारे में बताया जाता है कि ये बचपन से ही पढ़ने लिखने में काफी तेज थी उसे स्कूल में 93.6 % मार्क्स मिले थे। जिसकी वजह से सुरभि का मनोबल और भी ज्यादा प्रोत्साहित हुआ, और धीरे धीरे वो आगे बढ़ने लगी। हालांकि सुरभि बचपन से क्लेक्टर बनने का सपना देखती थी और उन्होंने जो सफलता हासिल की है वह बड़े बड़े भी हासिल नही कर पाए है। ये बात भी सच है कि सुरभि में आगे बढने की चाह थी और उन्होंने वो मुकाम भी हासिल किया है जिसे पाने के लिए वे बचपन से ही मेहनत करती आ रही है।
आपको ये सुनकर शायद यकीन नहीं होगा लेकिन सुरभि एक ऐसे स्कूल में पढ़ी है जहाँ पर बच्चो की सुविधा की जरुर का कोई सामान भी मौजूद नही था। ऐसे में सुरभि ने अपनी पढाई पर पूरा ध्यान दिया और अपने सपने को पूरा कर दिखाया है। इस लक्ष्य को पाकर सुरभि ने ये साबित कर दिया है कि कुछ बड़ा हासिल करने के लिए जरुरी नहीं कि हमे पढ़ने के लिए अंग्रेजी मीडियम स्कूल से ही पढ़े, एक अच्छे स्कूल में पढने वाले बच्चे ही बड़े होकर कुछ कर सकते है।
सबसे खास बात तो यह है कि कितना भी हो गांव और शहर के माहौल में एक बड़ा सा अंतर देखने को मिलता है लेकिन इन सभी दलीलों को किनारे रखते हुए व कड़ी चुनौतियां का सामना करते हुए सुरभि ने जो किया वो वाकई में काबिले तारीफ है। आपकी जानकारी के लिए बता दे की, कॉलेज के बाद सुरभि का पहला प्लेसमेंट TCS में हुआ था। लेकिन उन्होंने नौकरी को ज्वाइन नहीं किया क्योंकि उनकी दुनिया और सपने इससे भी बड़े थे।
सुरभि का कहना है कि सपने देखिए सपने देखने के पैसे नहीं लगते और बड़े सपने देखिऐ, उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करिए, इतनी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद यदि मैं आगे बढ़ सकती हूं। जब मैं इतने सारे एग्जाम क्लियर कर सकती हूं, टॉप कर सकती हूं, तो आप क्यों नहीं? जहाँ पहले के जमाने में सभी बच्चे हिंदी मीडियम स्कूलों में पढ़ाई करते थे वहीं आज कोई भी अपने बच्चो को सरकारी स्कूलों में डालने की सोचता तक नहीं है।