भिखारी को देखकर DSP ने रोकी गाड़ी, बाद में देखा तो निकला उसका सीनियर

देशभर में हर रोज इंसानियत को शर्मसार करने वाली खबरें सुनने और पढ़ने को मिलती हैं। इस कारण ज्यादातर लोग एक-दूसरे पर विश्वास करने तक से भी कतराते हैं। हालांकि देश में कहीं-ना-कहीं इंसानियत भी जिंदा है। आप में से कई लोग अपने सामने वाले शख्स के कपड़ो को देखकर उनके अमीर और गरीब होने का अंदाजा लगाते हैं। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो दूसरों की मदद के लिए आगे आते हैं और अपनी इंसानियत दिखाते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही
DSP के बारे में बताएंगे खास। जिसने एक गरीब व्यक्ति को देखकर सड़क पर अपनी कार रोकी और उसके लिए मदद का हाथ बढाया। मगर उसको इस बात की बिल्कुल भी खबर नहीं थी कि वो गरीब व्यकित उसका ही कोई करीबी निकल सकता है।

भिखारी निकला DSP के बैच का ऑफिसर

बता दें कि यह मामला ग्वालियर जिले का है। जहां DSP ने जब सड़क पर एक भिखारी को ठंड में कांपते हुए देखा तो उसने अपनी गाड़ी रोक कर उसके लिए मदद का हाथ बढ़ाया। लेकिन जब DSP उस गरीब भिखारी के पास गया तो वो उनके ही बैच का एक ऑफिसर निकला। दरअसल, कुछ समय पहले ग्वालियर में उपचुनाव की मतगणना की जा रही थी। उस दौरान डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिंह भदौरिया झांसी रोड पर से निकल रहे थे। इसके बाद जैसे ही वह बंधन वाटिका के नजदीक पहुंचे तो उन्हें एक भिखारी ठंड में कांपता हुआ नज़र आया। उसे ठंड में कांपते और बिलखते देख दोनों ही अफसर उसकी मदद के लिए रुक गए। लेकिन जब वो भिखारी के नज़दीक पहुंचे तो उसे देखकर दंग रह गए। वो भिखारी उनके ही बैच का ऑफिसर निकला।

DSP ने ऐसे की भिखारी की मदद

वहीं जब उन्हें पता चला कि वो भिखारी उनके बैच का ऑफिसर है, तो तुरंत दोनों ने मिलकर उसको अपने जूते व जैकेट पहनने को दिए। उनके बीच जब बातचीत हुई तो उन्हें समझ आया कि वह उनका जानकार ही था। भिखारी बनकर आस-पास घूमने वाला वो शख्स असल में एक समय में पुलिस ऑफिसर रह चुका है।

जानिए कौन था भिखारी व्यक्ति

बातचीत के दौरान उन्हें पता चला कि उस भिखारी का नाम मनीष मिश्रा था। जोकि पिछले 10 सालों से सड़कों पर आवारों की तरह घूम रहा था। असल में यह व्यक्ति DSP के 1999 बैच का एक पुलिस अधिकारी था जोकि एक समय में निशानची भी था। जानकारी के मुताबिक जब मनीष एक ऑफिसर था तो वह अलग-अलग पोस्टों पर कार्यरत था। अपने काम के दौरान जब वह दतिया में काम कर रहे थे, तो उस दौरान धीरे-धीरे उनकी मानसिक हालत बिगड़ती चली गई। इसके बाद उनके घरवाले उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले गए तो वह वहां से निकल कर भाग गए। जोकि अब आवारा की तरह सड़को पर घूम रहे थे। मनीष ने बताया कि जब उनकी हालत बिगड़ती चली गई तो उनके घरवालों ने भी उनका साथ छोड़ दिया था। फिलहाल दोनों अधिकारीयों ने मिलकर मनीष को एक समाजसेवी संस्था में भेज दिया है।

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