जानें, विजयादशमी पर शमी पूजन का क्या है महत्व, सही पूजा विधि

कल यानि की 8 अक्टूबर को देशभर में विजयादशमी का त्योहार मनाया जाएगा। ये त्योहार हिंदू धर्म में काफी महत्व रखता है। हर साल ये त्योहार नवरात्रि के 9 दिनों के समापन होने के बाद ठीक उसके अगले दिन यानि की दशवें दिन मनाया जाता है, इसी दशवें दिन माता की प्रतिमाओं को विसर्जित भी किया जाता है जिसकी वजह से इस दिन को दशाहरा के नाम से भी जाना जाता है। जानकारी के लिए बताते चलें कि इस दिन भगवान राम ने रावण और मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। बताया जाता है कि दशहरे के दिन रावण दहन भी किया जाता है, जो बुराई का प्रतीक है।

आपको शायद पता नहीं होगा लेकिन बताते चलें कि विजयदशमी पर रावण दहन के बाद कई प्रांतों में शमी के पत्ते को सोना समझकर देने का प्रचलन है, तो कई जगहों पर इसके वृक्ष की पूजा का प्रचलन है। वैसे पंडितों व विद्धानों की मानें तो विजयादशमी के दिन शस्त्रों की पूजा के अलावा शमी के पौधे की पूजा का बेहद ही खास महत्व है। विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष का पूजन अवश्य किया जाना चाहिए। खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का महत्व ज्यादा है। कहा तो यह भी जाता है कि महाभारत के युद्ध में पांडवों ने इसी वृक्ष के ऊपर अपने हथियार छुपाए थे और बाद में उन्हें कौरवों से जीत प्राप्त हुई थी।

विजयादशमी के मौके पर कार्य सिद्धि का पूजन विजय काल में फलदायी रहेगा। अगर आप इस दौरान शमी वृक्ष की पत्तियां लाकर घर की पूजा स्थल पर लाकर रख दें तो ये बेहद ही ज्यादा लाभकारी है। लाल कपड़े में अक्षत, एक सुपाड़ी के साथ इन पत्तियों को बांध लें। इसके बाद इस पोटली को गुरु या बुजुर्ग से प्राप्त करें और प्रभु राम की परिक्रमा करें।

इतना ही नहीं इसके अलावा एक कारण और भी है ज्योतिष के अनुसार, यह वृक्ष आने वाली कृषि विपदाओं का पहले से ही संकेत दे देता है। जिससे किसान आने वाली समस्या के लिए पहले से ही तैयार हो सके और आनेवाले संकट का सामना करने में सक्षम हो।

वैसे आपको शायद यह पता न हो लेकिन बता दे कि विजयदशमी के दिन नीलकंठ के दर्शन शुभ होते हैं। दशहरे पर अशमंतक अर्थात कचनार का वृक्ष लगाने का विशेष महत्व है। इसकी नियमित पूजा से परिवार में सुख-शांति आती है। विजयदशमी पर अपराजिता के पूजन का भी महत्व है। शास्त्रों में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास की कमी है तो अपराजिता की पत्तियों को हल्दी से रंगे, दूर्वा और सरसों को मिलाकर एक डोरा बना लें और उस डोरे को दाहिने हाथ में बांध लें। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है।

विजयादशमी पर शमी पूजन की विधि

सबसे पहले तो विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी के पौधे को जाकर नमन करना है और इसके बाद ये पूजन के साथ अपनी मनोकामना शमी वृक्ष के सामने हांथ जोड़कर कहते हैं। इतना ही नहीं पूजन के दौरान हाथ जोड़कर ये प्रार्थना करें-

‘शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी। अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया। तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।’

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