विश्वकर्मा पूजा 2019 : कल है विश्वकर्मा पूजा, जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में विश्वकर्मा जी की पूजा का भी बेहद महत्व है, कहा जाता है कि ये निर्माण एवं सृजन के देवता है। इतना ही नहीं यही वजह है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा का त्योहार तकनीकी जगत के क्षेत्र में मायने रखता है। हर साल की भांति इस बार 17 सितंबर, दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। वैसे जानकारी के लिए बताते चलें कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन सही विधि व शुभ मूहूर्त में पूजा करने से व्यापार में बढ़ोत्तरी होती है।

इतना ही नहीं कारीगरों की मान्यता है कि विश्वकर्मा की पूजा करने से सभी मशीनें जल्दी खराब नहीं होती, अच्छे से काम करती हैं और काम के समय पर धोखा नहीं देती हैं। इस दिन सभी काम रोककर मशीनों और औजारों की साफ-सफाई की जाती है और उनकी पूजा की जाती है। बता दें कि विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रतिष्ठान के सभी औजारों या मशीनों या अन्य उपकरणों की अच्छे से सफाई कर लें। उनपर तिलक लगाएं और फूल भी चढ़ाएं। इस दिन कई लोग हवन भी करते हैं। हवन के बाद सभी लोगों में प्रसाद का वितरण करना चाहिए।

पूजन विधि

इस दिन आपको अपने परिवार के साथ पूजा करें। हाथ में फूल, अक्षत लेकर भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए घर और प्रतिष्ठान में इन्हें छिड़क देना चाहिए। इसके बाद पूजन कराने वाले व्यक्ति को यज्ञ में आहुति देने का विधान है। वहीं ये भी बता दें कि आपको पूजा के दौरान दीप, धूप, पुष्प, गंध, सुपारी आदि का प्रयोग करना चाहिए और पूजन के अगले दिन प्रतिमा का विसर्जन करने का विधान है। इसके बाद अष्टदल की बनी रंगोली पर सतनजा बनाएं। फिर श्रद्धा और विश्वास के साथ विश्वकर्मा जी की मूर्ति या फोटो पर फूल चढ़ाकर कहें- हे विश्वकर्मा जी आइए, मेरी पूजा स्वीकार कीजिए।

शुभ मुहूर्त

इस साल विश्वकर्मा पूजा के दिन कन्या संक्रांति का संयोग बन रहा है। यह एक शुभ स्थिति है। इस दिन संक्रांति का पुण्य काल सुबह 7 बजकर 2 मिनट से है, इस समय पूजा आरंभ किया जा सकता है। पंडितों व विद्वानों की मानें इस दिन सुबह 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक यमगंड रहेगा। 12 बजे से 1 बजकर 30 मिनट तक गुलिक काल है और शाम 3 बजे से 4 बजकर 30 मिनट तक राहुकाल रहेगा। इन समयों को छोड़कर दिन में कभी भी पूजा आरंभ कर सकते हैं।

कहानी

शास्त्रों की माने विश्वकर्मा पूजा के पीछे भी एक कहानी है जिसके बारे में वर्णन किया गया है। दरअसल बताया जाता है कि स्वर्ग के राजा इंद्र का अस्त्र वज्र का निर्माण विश्वकर्मा ने ही तैयार किया था, वहीं यह भी बताया गया है जगत के निर्माण के लिए विश्वकर्मा ने ब्रह्मा की सहायता की और संसार की रूप रेखा का नक्शा भी तैयार किया था। इसके साथ ही साथ स्थित भगवान जगन्नाथ समेत बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण किया था। कहा तो यह भी जाता है कि माता पार्वती के कहने पर विश्वकर्मा जी ने ही सोने की लंका का निर्माण किया था। जिसे भगवान हनुमान जी ने जलाकर खाक कर दिया था, तब रावण ने विश्वकर्मा को बुलवाकर सोने की लंका का फिर से निर्माण करवाया था। साथ ही भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा ने द्वारका नगरी का निर्माण किया था।

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