दिन-रात सिलाई कर परिवार का पेट पालती थी मां, आज दोनों बेटे एक साथ बने IAS

वो कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि किस्मत में जितना लिखा होता है उतना सभी को मिलता है। लेकिन कई बार इंसान के जूनून को देखकर किस्मत को भी उसके आगे मजबूर होना पड़ता है। जी हां ये बिल्कुल सच है और आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर हर कोई उस मां की तारीफ कर रहा है। ये कहानी राजस्थान के झूनझनू शहर की है जहां पर मोदी रोड पर रहने वाले सुभाष कुमावत और उनकी पत्नी राजेश्वरी देवी के चेहरे पर आज एक अलग ही खुशी देखने को मिली है, जी हां ये जिस खुशी की आश में सालों से जी रही थीं वो आज आखिरकार इनके दरवाजे पहुंच ही गई। खुशी कुछ ऐसी है कि इस मां के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।

दरअसल यह एक परिवार गरीबी की हालत में जी रहा था, घर के मालिक यानि की सुभाष सिलाई का काम करते हैं और उनकी पत्नी राजेश्वरी देवी बंधेज बांधने का काम कर अपने परिवार का पेट पाल रही थी, इनके 3 बेटे हैं। जिनमें से 2 बेटों का इस बार सिविल सर्विसेज में चयन हुआ है। जी हां जानकारी के लिए बता दें कि साल जब UPSC 2018 का रिजल्ट सामने आया तो इसमें उनके बड़े बेटे पंकज कुमावत ने 443वीं और छोटे बेटे अमित कुमावत ने 600वीं रैंक हासिल की। इतना ही नहीं सुभाष कुमावत गुढ़ा मोड़ पर टेलरिंग का काम करते हुए भी इन्होने अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए हर प्रयास किया। इनके लिए ये खुशी बेहद मायने रखती है क्योंकि इनके परिवार में आजतक कोई दूसरा सरकारी नौकरी में नहीं गया।

जानकारी के अनुसार बताते चलें कि 443वीं रैंक प्राप्त करने वाले पंकज कुमावत ने IIT दिल्ली से मैकेनिकल में बीटेक किया, जिसके बाद इन्होने प्राइवेट कंपनी में भी कुछ समय तक नौकरी की। इस दौरान उन्होने अपने छोटे भाई अमित को भी अपने साथ रखा। उसने भी IIT दिल्ली से बीटेक किया। दोनों दिल्ली में पढ़ाई करते रहे इस दौरान उनका सपना था कि एक दिन उन दोनों को किसी भी तरह देश की इस सबसे बड़ी परीक्षा में सफल होना है। माता-पिता का सपना पूरा करना है। आज दोनों ने एक साथ यह सपना पूरा कर दिखाया।

एक माता पिता के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती थी कि इनके घर के दोनों बेटों ने एक साथ इतनी बड़ी परीक्षा पास किया। बातचीत के दौरान पंकज व अमित ने बताया कि हम जानते हैं, हमें माता पिता ने कैसे पढ़ाया? हमारे लिए पढ़ना आसान था, लेकिन उनके लिए पढ़ाना बेहद मुश्किल। उन्होने बताया कि वो हमारी फीस, किताबों और ऐसी दूसरी चीजों का इंतजाम कैसे करते थे। इस बात को हम सिर्फ महसूस कर सकते हैं। इसका संघर्ष तो उन्होंने ही किया। घर की स्थिति कुछ खास नहीं थी। हम चार भाई बहनों को पढ़ाने के लिए मम्मी पापा सिलाई करते। घर पर रातभर जागते। मां तुरपाई करती और पापा सिलाई। वे हमेशा हमसे कहते कि तुम लोगों को पढ़कर बड़ा आदमी बनना है। यह सपना उन्होंने देखा। हमने तो बस उसे पूरा किया है।

वैसे आपको बताते चलें कि आज इनके परिवार की स्थिति पहले से काफी हद तक ठीक है, लेकिन इस कहानी को सुनकर कई लोगों के अंदर उम्मीद की किरण जाग गई होगी क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में भी इन दोनों भाईयों ने हार नहीं मानी। कहने का अर्थ ये है कि चाहे कितनी भी कमियों, परेशानियों और नकारात्मक चीजों के कारण हार नहीं मानना चाहिए।

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