जानिए क्यों होता है ट्रेन के डिब्बो का रंग लाल और नीला, क्या है इसके पीछे का रहस्य

छुक-छुक करती रेलगाड़ी में हम कितना लंबा सफर कर लेते हैं और पता भी नहीं चलता। एक शहर से दूसरे शहर, एक गांव से दूसरे गांव बिना किसी परेशानी के ये हमे अपनी मंजिल तक पहुंचा देती है और बदले में एक मामूली सा किराया लेती है। रेलगाड़ी हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है लेकिन ये अपने अंदर कई राज़ भी समेटे है जिन्हें आम आदमी जानना चाहता है, ऐसे एक राज के बारे में हम आपको बताने वाले हैं…

अब हम बात करते हैं ट्रेन के उस राज के बारे में जिसके बारे में हम आपको बताने वाले थे। दरअसल आपने ट्रेनों में देखा होगा कि आजकल ट्रेन के कोच दो तरह के आने लगे हैं, पहला तो नीले रंग के कोच जिनमें आप आमतौर पर सफर करते हैं लेकिन एक कोच आपने और देखें होंगे जो सिल्वर और लाल रंग के होते हैं क्या आप जानते हैं कि दोनों में क्या अंतर है और दोनों का क्या उपयोग है। नहीं जानते हैं तो कोई बात नहीं यहां हम आपको दोनों के बारे में पूरी जानकारी देंगे।

सबसे पहले हम आपको बताते हैं उन कोच के बारे में जिनमें आपने सबसे ज़्यादा सफर किया है। नीले रंग के रेलवे कोच में आपने सबसे ज़्यादा सफर किया होगा। इन कोच को इंटीग्रल कोच कहा जाता है जिन्हें इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में तैयार किया जाता है। भारत में सबसे ज़्यादा यही कोच इस्तेमाल किए जाते हैं।आपने नीले रंग के अलावा सिल्वर और लाल रंग के कोच भी देखे होंगे। इन कोच को लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच कहा जाता है। तेज गति वाली ट्रेनों में किया जाता हैं देश की सबसे तेज ट्रेन गतिमान एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस और राजधानी एक्सप्रेस में इन्हीं कोच का प्रयोग किया जाता है।

इन कोच को फास्ट स्पीड ट्रेन के लिए ही डिजाइन किया गया है जिनकी  क्षमता होती है कि ये 160 से 180 किमी प्रति घंटे की स्पीड में दौड़ सके तो वहीँ इसके विपरीत नीले रंग के कोच का उपयोग माध्यम गति की ट्रेनों में किया जाता हैं। जिसकी सामान्य गति 70 किलोमीटर से 140 किलोमीटर/घंटा होती हैं। इतनी गति में ये दोनो कोच आसानी से यात्रियो को मंजिल तक पहुंचा देते है।

स्टेलनेस स्टील तथा एल्युमिनियम से बने और एंटी टेलीस्कोपिक सिस्टम से लैस एलएचबी कोच के डिब्बे पटरी से आसानी से नही उतरते, वही आईसीएफ कोच के डिब्बो की बात करे तो माइल्ड स्टील से बने आईसीएफ कोच के डिब्बे बड़े झटके भी आसानी से झेल सकते हैं जिससे ट्रेन दुर्घटना की सम्भावाना कम रहती हैं.जहाँ एलएचबी कोच में ट्रेन को शीघ्र रोकने के लिए डिस्क ब्रेक वयवस्था लगाई गयी हैं वही थोडा देर से रुकने वाली आईसीएफ ट्रेन कोच में एयब्रेक और थ्रेड बैक सिस्टम लगाया गया होता हैं.

प्रत्येक 5 लाख किलोमीटर चलने के बाद एलएचबे कोच को मेंटिनेस की आवश्यकता पड़ती हैं दूसरी और आईसीएफ कोच की बात करे तो प्रत्येक 2 से चार लाख किलोमीटर चलने पर इनके मेंटिनेस की जरूरत होती हैं. एलएचबी कोच में सफर करने वाले यात्रियो को ट्रेन की आवाज से तकलीफ ना हो इसके लिए इनका साउंड लेवल 60 डेसिबल रखा गया हैं वही आईसीएफ कोच का साउंड लेबल 100 डेसिबल रखा गया हैं.

 

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