नवरात्रि के दशवें दिन बंगाल में महिलाएं क्यों खेलती हैं सिंदूर खेला, जानें क्या है इसका महत्व

वैसे तो नवरात्र का त्योहार 9 दिनों का होता है, लेकिन दसवें दिन भी इस त्योहार की धूम बनी रहती है। हम ये तो जानते ही हैं कि नवरात्रि हिन्‍दुओं के प्रमुख त्‍योहारों में से एक है। इन 9 दिनों में भक्त माता को प्रसन्न करने के लिए सभी तरह से प्रयास करते हैं। कहा जाता है कि नवरात्रि के दिनों में मां के दर्शन और पूजन से विशेष फल मिलता है। देवी मां के दर्शन मात्र से जीवन में सफलता मिलती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि बंगाल में माता की पूजा का एक और विधान है जिसमें सिंदूर का प्रयोग किया जाता है। हिंदू धर्म में सिंदूर का बहुत बड़ा महत्व होता है। सिंदूर को महिलाओं के सुहाग की निशानी कहते हैं। नवरात्रि के 10वें दिन यानी दशमी के दिन शादीशुदा महिलाएं सबसे पहले दुर्गा मां को सिंदूर लगाती हैं। इसके बाद एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। तो आइए जानतें है कि आखिर ऐसा क्यों करती है?

अब यह सवाल आता है कि दशमी के दिन महिलाएं दुर्गा मां को लगाती हैं सिंदूर

नवरात्रि के 10 वे दिन महिलाओं को सबसे पहले दुर्गा मां को सिंदूर लगाने की परंपरा है और इसके बाद वो एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। जिसे ‘सिंदूर खेला’ के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि यह सच है कि दशमी पर सिंदूर लगाने की पंरपरा सदियों से चली आ रही है। खासतौर से बंगाली समाज में इसका बहुत महत्व है। ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं और वह अपने मायके में पांच दिन रुकती हैं, जिसको दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि मां दुर्गा मायके से विदा होकर जब ससुराल जाती हैं तो सिंदूर से उनकी मांग भरी जाती है। साथ ही दुर्गा मां को पान और मिठाई भी खिलाई जाती हैं।

विसर्जन से पहले महिलाओं के सिंदूर खेलने के पीछे ये है वजह

धर्मिक शास्त्रों में बताया गया है कि मां दुर्गा हर साल एक बार मायके आती हैं। मान्यता है कि दशमी के दिन देवी मां ससुराल जाती हैं। यानी की दशमी के दिन मायके से विदा होकर ससुराल जाती हैं। इतना ही नहीं जैसा कि पूराणों में लिखित है कि हिन्दू धर्म में सिंदूर का बहुत बड़ा महत्व होता है। सिंदूर महिलाओं के सुहाग की निशानी है। यही कारण दशमी के दिन देवी मां को सिंदुर से उनकी मांग भरकर विदा किया जाता है।

ऐसी भी मान्यता है कि सिंदूर खेला के बाद दुर्गा मां की प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। इस दौरान लोग नाचते-गाते हुए मां की प्रतिमा को पानी में विसर्ज‍ित कर देते हैं। वैसे तो सिंदूर खेला की रस्म केवल शादीशुदा महिलाओं के लिए ही होती है मगर कुंवारी लड़कियां भी अब इस रस्म को निभाती हैं ताकि उन्हें अच्छा और मनपसंद वर मिल सके, यह सुहाग की लंबी आयु की कामनाओं का प्रतीक है। बंगाल पूजा की यह परंपरा बेहद ही अद्भुत है, इस रस्म को निभाते वक्त पूरा माहौल उमंग और मस्ती से भर जाता है। इसके थोड़ी देर बाद मां को विसर्जित करने का वक्त आ जाता है।

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