चंद्रयान-2: विक्रम लैंडर को लेकर आई अहम जानकारी, नासा ने ली चांद के विशाल गड्ढों की तस्वीरें

चंद्रयान-2 मिशन जिसके बारे में आप सभी ने काफी कुछ सुना होगा वहीं आपको बताते चलें कि अभी भी इसको लेकर कई सारी खबरें आ रही है और इसके हर पल पर दुनियाभर के लोगों की नजर है। चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर को लेकर एक नया अपडेट आया है। चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की खोज में जुटे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा एक बार फिर चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर को चंद्रमा की सतह पर ढूढ़ पाने में विफल रहा है। दरअसल चांद की सतह से 100 किलोमीटर दूर चक्कर काट रहे चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के सिंथेटिक अपर्चर रेडार ने इम्पैक्ट क्रेटर की बेहद खूबसूरत तस्वीर भेजी है।

जी हां यही नहीं जानकारी के लिए यह भी बता दें कि यह चांद के दक्षिण पोल पर मौजूद क्रेटर के ऑरिजिन और उम्र को बताएगा जो निश्चित रूप से चांद के विकास को समझने में मदद करेगा। इस मिशन पर नासा भी अब भागीदार है दरअसल इस दौरान अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कहा कि चंद्रमा क्षेत्र के पास से हाल में गुजरे उसके चंद्रमा ऑर्बिटर द्वारा कैद की गई तस्वीरों में चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर का कोई सुराग नहीं मिला है। वहीं इसके अलावा यह भी बताया कि ये ऑर्बिटर चंद्रमा के उस क्षेत्र से गुजरा था, जहां भारत के महत्त्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 ने सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास किया था। जैसा कि आपको भी पता ही है कि बीते 7 सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग कराने का प्रयास किया था, लेकिन लैंडर से संपर्क टूट जाने के बाद से उसका कुछ पता नहीं चल सका है।

हालांकि वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि चांद की सतह पर एक च्रकीय दबाव हैं जो कि उल्कापिंड,क्षुद्रग्रह, धूमकेतू की लगातार वर्षा के कारण तैयार होते हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि सिथेंटिक अपर्चर रेडार यानि की (SAR) का एल ऐंड एस बैंड एक शक्तिशाली रिमोट सेंसिंग उपकरण है जो कि ग्रह के सतह और उप-सतह का अध्ययन करता है। यह इम्पैक्ट क्रेटर के आकृति विज्ञान की जानकारी देता है। ये खुलासा चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर में लगे डुअल फ्रिक्वेंसी सिंथेटिक एपर्चर राडार (DF-SAR) ने किया है। इस उपकरण ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद सतह का अध्ययन किया है।

वहीं इसके अलावा अगर एल-बैंड जो है वो उसके गहराई में जा सकने वाली क्षमता चांद के दबे हुए हिस्से की अंदरुनी हिस्से की जांच में मदद करता है। देखा जाए तो एल ऐंड एस बैंड स्थायी रूप से छायादार क्षेत्र में जमे बर्फ की पहचान और उनकी मात्रा का आकलन भी करने की क्षमता रखता है। इससे पहले चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर में मौजूद सिंगल एस-बैंड वाले SAR और नासा के एलआऱओ पर मौजूद SAR ने इम्पैक्ट क्रेटर में विस्फोट से निकले मटीरियल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी थी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह संभव है कि विक्रम किसी छाया में छिपा हो या फिर जिस क्षेत्र में हमने उसे खोजा, वहां पर वह नहीं हो। इतना ही नहीं इससे पहले 17 अक्तूबर को किए गए एक मिशन में भी एलआरओ टीम को लैंडर की तस्वीर लेने या उसका पता लगाने में कामयाबी नहीं मिली थी।

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