हमारे धर्म शास्त्र के मुताबिक इंसान के कुल 16 संस्कार होते हैं जिन्हें जन्म संस्कार से लेकर अंतिम संस्कार तक पूरा किया जाता है. ये तो आप सभी जानते होंगे जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी आत्मा की शान्ति के लिए हम एक संस्कार निभाते हैं जिसे कि तेरहवीं संस्कार भी कहते हैं और इसे व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही पूरा किया जाता है.
इस संस्कार के दौरान परिवार वाली मृत्यु भोज का आयोजन करते हैं, जहाँ सभी के लिए खाना बनाया जाता है और पुजारियों को खाना परोसा जाता है लेकिन ये बात कोई नहीं जानता कि आखिर ये सही भी है या गलत? तो आज हम आपको इस संस्कार से जुड़ी एक ऐसी बात बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर शायद आप भी चौंक गए.
भगवान श्री कृष्ण द्वारा कही गयी ये महत्वपूर्ण बात
बता दें कि महाभारत में जब युद्ध आरम्भ ही होने वाला था तो उस दौरान भगवान श्रीकृष्ण युद्ध से पहले दुर्योधन के घर गए और उन्हें युद्ध को ना करने और संधि करने का प्रस्ताव रखा था. पर दुर्योधन ने उनका ये प्रस्ताव ठुकरा दिया जिसकी वजह से भगवान श्रीकृष्ण बेहद दुखी हुए और वहां से बाहर की ओर प्रस्थान करने लगे.
तभी दुर्योधन ने भगवान श्री कृष्ण से भोजन करने के लिए निवेदन किया फिर श्रीकृष्ण ने उन्हें जवाब देते हुए कहा कि “भोजन तभी करना चाहिए जब भोजन करवाने वाला और भोजन करने वाला दोनों का मन प्रसन्न हो और अगर दोनों के मन में किसी तरह की पीड़ा हो या कोई कष्ट हो तो हर्गिज भोजन को ग्रहण नहीं करना चाहिए.”
भगवान श्री कृष्ण के अनुसार शोक में भोजन करना होता है बेहद बुरा
भगवान श्री कृष्ण के अनुसार जब “कोई व्यक्ति शोक के दौरान जो लोगों को भोजन करवाता है या खुद भी उस भोजन को ग्रहण करता है तो ऐसे में उनकी ऊर्जा का नाश होता है” . श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’ अगर किसी इंसान का मन ही प्रसन्न ना हो तो उस भोजन का आयोजन ही क्यों ?
जब व्यक्ति का मन अंदर से ही दुखी हो तो ऐसे में उसे बिलकुल भी भोजन नहीं करना चाहिए. यही वजह है कि जब किसी की मृत्यु होती है तो तेरहवीं पर लोगों के लिए भोजन का आयोजन होता है. लेकिन इस दुख के समय इंसान अन्दर से काफी ज्यादा उदास होता है और ऐसे में व्यक्ति का भोजन ग्रहण करना बुरा माना जाता है.
महाभारत में भगवान श्री कृष्ण के द्वारा बताए गयी बातें का इसलिए करना चाहिए पालन
महाभारत में भगवान श्री कृष्ण द्वारा कही गयी बातों का पालन करना चाहिए और उनकी कही गयी हर बात का पालन करना चाहिए क्योंकि महाभरात में उनके द्वारा दिए गए सभी संदेश हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं. यही वजह है कि तेरहवीं में किये जाने वाले भोजन को नहीं खाना चाहिए क्योंकि उस समय व्यक्ति का मन दुखी होता है. उसे खाने से व्यक्ति का पेट तो जरुर भर जाएगा लेकिन उसके दिल को कभी भी शांति नहीं मिल पाएगी.
इसके साथ ही हमे इस चीज का ज्ञान जानवरों से भी लेना चाहिए की किस तरह से यदि किसी जानवर की मृत्यु हो जाती है तो उसके साथ रहने वाले जानवर भी शोक मनाते है और अपने साथी के बिछुड़ जाने के गम में वे उस दिन चारा नहीं खाते है जबकि 84 लाख योनियों में श्रेष्ठ मानव,जवान आदमी की मृत्यु पर हलुवा पूड़ी खाकर शोक मनाने का ढ़ोंग रचता है।इससे बढ़कर निन्दनीय कोई दूसरा कृत्य हो नहीं सकता।यदि आप इस बात सेसहमत हों, तो आप आज सेसंकल्प लें कि आप किसी के मृत्यु भोज को ग्रहण नहीं करंगे।