पितृ पक्ष: पुत्र के न होने पर शास्त्रों में इन्हें मिला है पिंडदान का अधिकार

पितृपक्ष का महीना चल रहा है ऐसे में हर व्यक्ति के घरों में अपने पूर्वजों को याद किया जाता है। ये समय ही पूर्वजों के लिए होता है जो कि अब इस दुनिया में नहीं रहे, वहीं बताते चलें कि हर बार यह पक्ष आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से ही आरंभ होता है, इस दौरान सभी लोग अपने अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। 14 सितंबर से शुरू हुआ यह पक्ष पूर्णिमा के दिन ऋषि तर्पण और श्राद्ध आरंभ होकर 28 सितंबर शनि अमावस्या तक चलने वाला है। शास्त्रों की माने तो किसी वस्तु का गोलाकर रूप पिंड कहा जाता है।

पिंडदान के समय मृतक के निमित्त अर्पित किए जाने वाले पदार्थ, जो जौ या चावल के आंटे को गूंथकर बनाया जाता है वह गोलाकृति पिंड कहलाता है। इसी बीच कई सारी मान्यताएं ऐसी भी है जिसको लेकर काफी कुछ शास्त्रों में बताया गया है, शास्त्रों की मानें तो नरक से मुक्ति पुत्र द्वारा ही मिलती है इसलिए कहा जाता है कि मरने के बाद सभी संस्कारो को पुत्र को ही पूरा करना चाहिए। लेकिन कई बार अगर उस व्यक्ति का पुत्र न हो तो सवाल आता है कि किसे ये सभी संस्कार पूरे करने का अधिकार दिया गया है, तो आइए जानते हैं शास्त्रों के अनुसार किसे मिला है ये अधिकार

पुत्र के न होने पर ये होते हैं पिंडदान के अधिकारी

सामान्यत पिता का पिंडदान पुत्र द्वारा ही किया जाता है, लेकिन अगर किसी पिता का पुत्र नहीं है तो ऐसे में यह अधिकार शास्त्रों के अनुसार उसकी पत्नी को मिला है, वहीं यह भी बता दें कि अगर उस व्यक्ति की पत्नी भी नहीं है तो सगा भाई और उसके भी अभाव में सगे-संबंधियों को पिंडदान कर सकते हैं।

कई बार यह भी संसय बना रहता है कि किसी व्यक्ति के अगर एक से अधिक संतान है तो पितरों का पिंडदान करने का अधिकार सबसे बड़े पुत्र को ही दिया जाता है। लेकिन अगर पुत्र नहीं है तो पुत्री का पुत्र यानि की जिसे नाती भी कहते हैं वो भी पिंडदान कर सकता है।

वहीं पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र भी पिंडदान कर सकते हैं। पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री को पिंडदान करने का अधिकार दिया जाता है। वहीं पति को भी पत्नी का पिंडदान करने का अधिकार तब बताया गया है जब उसका कोई पुत्र ना हो।

शास्त्रों की माने तो अगर पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र भी ना हों तो उनका भतीजा भी पिंडदान कर सकता है। इसके अलावा गोद में लिया पुत्र भी पिंडदान का अधिकारी माना गया है।

कई पक्षों में तो बहू को भी पिंडदान का अधिकार मिला हुआ है, पुत्र के नहीं होने पर बहू भी दे सकती है पिंडदान। गया पिंडदान की कथा में भगवान राम और देवी सीता का उल्लेख मिलता है, जहां पर राजा दशरथ का पिंडदान देवी सीता ने किया था।

वैसे शास्त्रों की मानें पितृपक्ष में हर दिन स्नान करने के बाद दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके जल में काला तिल डालकर तर्पण करना चाहिए। परिवार कल्याण हेतु पितरों का सम्मानपूर्वक श्राद्ध किया जाता है।

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