कब और किन परिस्थितियों में लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन, इसके लगने से क्या होते हैं बदलाव

आजकल राजनीति जगत में काफी हलचल मची हुई है, खासकर महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ ऐसा देखने को मिल रहा है जिसकी उम्मीद भी नहीं थीं। जी हां महाराष्ट्र की सत्ता में काफी समय से संघर्ष चल रहा था जो कि अब समाप्त हो चुका है, और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया है। बताते चलें कि विधानसभा चुनावों में बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन में बात नहीं बन पाई जिसकी वजह से ये दोनों ही पार्टीयां अपने अपने रास्ते मुड़ गई और अब जाकर राज्य में किसी भी दल के पास बहुमत न होने के कारण राष्टपति का शासन लागू हो गया है।

हालांकि राष्ट्रपति शासन लगने के बाद महाराष्ट्र में सरकार गठन के रास्ते अभी भी बंद नहीं हुए हैं। यह भी सच है कि राष्ट्रपति शासन के दौरान अगर कोई भी पार्टी राज्यपाल के पास जाती है और उन्हें विश्वास दिला देती है कि उनके पास पर्याप्त बहुमत है तो वो राज्य में सरकार का गठन हो सकता है और राष्ट्रपति शासन खत्म हो सकता है। लेकिन आज हम आपको यह बताएंगे कि आखिर किन-किन परिस्थितयों में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगता है और इसके क्या प्रावधान होते हैं?

राष्ट्रपति शासन की संवैधानिक व्यवस्था

सबसे पहले तो राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान के बारे में जानते हैं, जिसके बारे में संविधान में भी बताया गया है, अनुच्छेद 356 की मानें तो राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है। वहीं यह जरूरी नहीं है कि राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही यह फैसला लें। इसके अलावा संविधान में यह भी बताया गया है कि राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के दो महीनों के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना जरूरी है।

क्यों लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन

सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर क्यों लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन? तो जैसा कि हमने ऊपर भी बताया कि जब किसी सदन में किसी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत नहीं होता है तभी यह शासन लगता है। इस दौरान राज्यपाल सदन को 6 महीने की अवधि के लिए ‘निलंबित अवस्था’ में रख सकते हैं। और इस 6 माह में भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाए तो वैसे में पुन: चुनाव आयोजित किए जाते हैं। राष्टपति शासन की अधिकतम अवधी 3 वर्ष तक हो सकती है जिसे 6 -6 माह पर बढ़ाया जा सकता है।

क्या होते हैं बदलाव

राष्ट्रपति शासन के लग जाने से राज्य में कई बदलाव आते हैं।

राष्ट्रपति शासन लगने के दौरान राष्ट्रपति मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रीपरिषद् को भंग कर देते हैं।

इसके अलावा राज्य सरकार के सभी कार्य राष्ट्रपति के हाथ में चले जाते हैं।

राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति के नाम पर राज्य सचिव की सहायता से अथवा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी सलाहकार की सहायता से राज्य का शासन चलाता है।

इस दौरान राष्ट्रपति, घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग संसद करेगी।

राष्ट्रपति शासन के दौरान संसद ही राज्य के विधेयक और बजट प्रस्ताव को पारित करती है।

सबसे खास बात तो यह है कि राष्ट्रपति शासन के दौरान संसद को यह अधिकार मिल जाता है कि वो राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति राष्ट्रपति अथवा उसके किसी नामित अधिकारी को दे सकती है।

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