कभी कूड़ा बीन कर 5 रूपये प्रतिदिन कमा कर परिवार का पेट पालती थी ये महिला, अब जानिए कैसे बन गई हैं करोड़ों की मालकिन

मेहनत करने वालों की हमेशा जीत होती है मेहनत करने वाले इंसान को कामयाबी हासिल होती है चाहे फिर वह कामयाबी थोड़ी देर से ही सही आए पर आती जरूर है. अमीरी और गरीबी किस्मत का खेल है पता ही नहीं चलता किस्मत कब किसको अमीर और कब किसको गरीब बना दे. अगर कोई दिल जान लगाकर मेहनत करे तो उसे सफलता जरूर प्राप्त होती है. सफलता मेहनत की मोहताज है. जिन्होंने अपने सपने को सच करने की मन में ठान ली है. फिर चाहे कितनी भी कठिनाई आए उसको कितनी भी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा सफलता की सीढ़ियों पर चढ़कर ही दम लेता है. अपने सपने को साकार करने का जुनून ही लोगों को फकीर से अमीरी के शिखर पर बिठा देता है. आज हम आपको एक ऐसी ही महिला के बारे में बताने जा रहे हैं. जिन्होंने अपनी मेहनत के दम पर गरीबी से करोड़ों रुपए का सफर तय किया इस महिला का नाम मंजुला वाघेला है.

जानकारी के लिए बता दें इस महिला की उम्र 60 वर्ष है और यह 2081 में कचरा बीनने का काम किया करती थी. लेकिन अब यह एक करोड रुपए का सालाना कारोबार करने वाली एक सफाई कर्मी कंपनी की प्रमुख है. बता दे पहले मंजुला अहमदाबाद की सड़कों पर कूड़ा बीनने का काम किया करती थी. मुश्किल से एक दिन में यह महिला महज़ ₹5 की कमाई ही कर पाती थी. लेकिन उसे क्या मालूम था कि अपनी मेहनत के दम पर वह है कई लोगों के लिए प्रेरणा बन जाएंगी.

वर्ष 1981 में अहमदाबाद की है महिला सड़कों से कूड़ा कचरा उठा मुश्किल से ₹5 एक दिन में कमा पाती थी. लेकिन आज उनका कारोबार 1 साल में एक करोड रुपए की कमाई करता है. इन दिनों मंजुला क्लीनर्स कोऑपरेट की प्रमुख के रूप में कार्यकृत है. इस संस्था में 400 से अधिक लोग काम करते हैं, क्लीनर्स को ऑपरेट आज गुजरात के 45 संस्थानों और सोसाइटीज में सफाई की काफी विश्वास ने सुविधा उपलब्ध कराता है. बता दे मंजुला कभी भी मेहनत करने से नहीं कतराती थी. यहां तक कि जब वह दिन के महज ₹5 कमाती थी. तब भी वह सुबह जल्दी उठ अपने काम पर लग जाती थी. मैं अपने कंधे पर एक बड़ा सा झूला लटका कर लोगों के द्वारा फेंके गए कचरे से री साइकिल कचरा इकट्ठा करती. सभी कचरे को इकट्ठा कर इसमें से जो वस्तुएं उपयोग हो सकती है. उनको कबाड़ी को जाकर बेच देती थी.

एक दिन मंजुला के जीवन की नई शुरुआत हुई. जब उनका परिचय एंप्लॉयड वीमेंस एसोसिएशन की स्थापक इला बेन भट्ट से हुआ. जो कि अब मंजुला की सफाई कंपनी चलाने में उनकी मदद करती हैं. व्यवसाय को खड़ा करने के लिए मंजुला ने काफी सारी चुनौतियों का सामना किया. उसके सामने सबसे बड़ा दुख आया जब उनके पति इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गोरा अपने पीछे अपनी एक छोटे बच्चे को छोड़ गए. लेकिन यह इतना बड़ा हादसा भी मंजुला को उनके मार्ग से नहीं भटका पाया. गौरतलब है कि मंजुला ने अपने व्यवसाय स्थापना की कमान को संभाले रखा. और जल्द ही सुंदर या मंडल को उनका सबसे पहला ग्राहक भी मिल गया जो कि नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन इन था. उन्होंने संस्थाओं भवनों राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों को अपनी सफाई की सुविधा उपलब्ध कराना शुरू कर दी. और आज मंजिला सफलता की सीढ़ियों पर पहुंच चुकी है. उनकी यह संस्था आज साल में एक करोड रुपए की कमाई करती है.

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