दिन में इन 2 समय पर ही करें श्राद्ध कर्म, इस समय तो भूल से भी न करें

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का महत्व बेहद ही ज्यादा होता है ऐसे में इन दिनों लोगों को काफी संभलकर रहना चाहिए। वहीं आपको बताते चलें कि शास्त्रों में ऐसे कई सारे नियम बताए गए हैं जिसका पालन न करने पर कई सारे नुकसान होते हैं। वैसे सामान्यत: तो हर अमावस्या व पूर्णिमा के दिन पितरों के लिये श्राद्ध तर्पण आदि कर्म किए जा सकते हैं। लेकिन पितृपक्ष के दौरा किए गए श्राद्ध से पितृ अति प्रसन्न होते हैं, जी हां कहा जाता है कि अगर आपके श्राद्ध कर्म से पितृ प्रसन्न हो जाते हैं तो जीवन में किसी चीज़ की कमी नहीं रहती।

धार्मिक मान्यता है कि पिंडदान की पूजा में किसी तरह की लापरवाही करने से आपके पितरों की आत्मा आपसे नाराज या अशांत हो सकती है। इसलिए इसको करते समय कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए। पितृपक्ष के दौरान पितरों के आत्मा की शांति की लिए पिंडदान और तर्पण किया जाता है। मान्यता के अनुसार पितृपक्ष में पितरों की पूजा न करने से पूर्वजों को मृत्युलोक में जगह नहीं मिलती है और उनकी आत्मा भटकती रहती है। इस वजह से इस दौरान खासतौर से विधि पूर्वक पितृपक्ष के दौरान पूजा करते हुए तर्पण और पिंडदान करना चाहिए।

इतना ही नहीं जब शास्त्रों में इसका विस्तृत विवरण पढ़ेंगे तो उसमें बताया गया है कि पितृ पक्ष में इन 2 समय पर ही श्राद्ध कर्म करने चाहिए क्योंकि इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है लेकिन इसके अलावा एक समय के बारे में भी बताया गया है जिस दौरान आपको भुल से भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। तो आइए सबसे पहले जानते हैं उस 2 समय के बारे में जब श्राद्ध करना शुभ माना गया है।

कहा जाता है कि श्राद्ध के लिये दिन में ये हैं सबसे श्रेष्ठ समय एवं श्राद्ध के लिये दोपहर का कुतुप और रौहिण मुहूर्त श्रेष्ठ है। कुतप काल में किये गये दान का अक्षय फल मिलता है।

1- कुतुप मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक।
2- रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से दिन में 1 बजकर 15 मिनट तक।

कहा जाता है कि श्राद्ध पक्ष के 15 दिनों में, कम से कम जल से तर्पण ज़रूर करना चाहिए। क्योंकि चंद्रलोक के ऊपर और सूर्यलोक के पास पितृलोक है और पितृ लोक में पानी की कमी होती है। इसलिए जब जल से तर्पण किया जाता तो उससे दिवंगत पितरों को तृप्ति मिलती है।

इनको करना चाहिए श्राद्ध कर्म

कहा जाता है कि पिता का श्राद्ध पुत्र को करना चाहिए और अगर किसी व्यक्ति का एक से ज्य़ादा पुत्र होता है तो श्राद्ध करने का अधिकार बड़े पुत्र को ही होता है, लेकिन वहीं पुत्र के न होने पर, पत्नी को श्राद्ध करना चाहिये। पत्नी के न होने पर सगा भाई भी श्राद्ध कर्म कर सकता है।

इस समय भूलकर भी न करें श्राद्ध कर्म

अब बात करें उस समय की जब श्राद्ध नहीं करना चाहिए तो ऐसे में इन 2 वक्त पर कभी भूल से भी श्राद्ध नहीं करें।

कभी भी रात में श्राद्ध न करें, क्योंकि रात्रि राक्षसी का समय है।
दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं किया जाता।

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